हरदोई जिले के एक छोटे से गाँव सरैया, गोपामऊ की रहने वाली ज्योति आज जब अपने जीवन की यात्रा को पीछे मुड़कर देखती हैं, तो उन्हें यकीन नहीं होता कि कठिनाइयों और सामाजिक रुकावटों से भरी उनकी राह उन्हें यहाँ तक ले आएगी — जहाँ आज वे अपने गाँव की सबसे अधिक शिक्षित लड़की हैं और एक सरकारी शिक्षक बनने का सपना पूरी संजीदगी से जी रही हैं।
बचपन का संघर्ष और एक नई शुरुआत
ज्योति का जन्म एक साधारण ग्रामीण परिवार में हुआ। पिता श्री राम दयाल और माता श्रीमती रामवती दोनों ही सीमित संसाधनों में जीवन यापन करते थे। परिवार में तीन लोग थे और सीमित आमदनी के बीच बेटियों की शिक्षा को प्राथमिकता देना समाज के हिसाब से “अव्यवहारिक” माना जाता था।
परंतु जब ज्योति महज़ तीन वर्ष की थीं, तब उन्होंने अपने गाँव में चल रहे सर्वोदय आश्रम के लर्निंग सेंटर से शिक्षा की पहली किरण देखी। वहीं से उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत की — एक ऐसी शुरुआत जिसने आगे चलकर उन्हें आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
सामाजिक ताने, लेकिन पढ़ाई से नाता नहीं टूटा
ज्योति ने गाँव के ही सरकारी स्कूल से कक्षा 8 तक की पढ़ाई पूरी की। परंतु जैसे ही वे इस स्तर तक पहुँचीं, समाज की बंद सोच और परंपराएं उनके रास्ते में आ गईं। गाँव में यह आम था कि लड़कियों को आठवीं के बाद घर बैठा लिया जाता था — “अब बड़ी हो गई है”, “अब घर संभाले”, “बहुत पढ़-लिखकर क्या करेगी?”, जैसी बातें सुनाई देने लगीं।
परंतु इसी दौर में सर्वोदय आश्रम की एक दीदी ने ज्योति को न सिर्फ़ समझाया बल्कि उनका हाथ पकड़कर उन्हें आगे बढ़ने का साहस भी दिया। उन्होंने कहा – “अगर तुम रुक गईं, तो कई और लड़कियाँ भी रुक जाएँगी। तुम्हें अब सिर्फ़ अपने लिए नहीं, पूरे गाँव की लड़कियों के लिए पढ़ना है।”
घर की ज़िम्मेदारियाँ और पढ़ाई का संतुलन
परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। लेकिन पढ़ाई के लिए जूनून ने ज्योति को छोटे बच्चों को कोचिंग पढ़ाने की ओर प्रेरित किया। वे दिन में घर के कामों में हाथ बँटातीं, बच्चों को पढ़ातीं और फिर रात में खुद की पढ़ाई करतीं।
सर्वोदय आश्रम की दीदी उनके साथ खड़ी रहीं — उन्होंने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की पढ़ाई में मदद की, पढ़ाई के समय मार्गदर्शन दिया और मानसिक रूप से कभी टूटने नहीं दिया।
मेहनत का फल: बेहतरीन अंक और नई दिशा
ज्योति ने कक्षा 10 और 12 दोनों में उत्कृष्ट अंक प्राप्त किए। गाँव वालों को यकीन नहीं हुआ कि जो लड़की समाज के नियमों के ख़िलाफ़ खड़ी थी, उसने अपनी मेहनत से इतना कुछ कर दिखाया।
इसके बाद ज्योति ने B.A. (स्नातक) की पढ़ाई भी जारी रखी, वह भी उसी बीच बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हुए — ताकि परिवार पर बोझ न बने और खुद की आगे की पढ़ाई भी चलती रहे।
आज की स्थिति और भविष्य की उड़ान
आज ज्योति B.Ed. (बैचलर ऑफ एजुकेशन) कर रही हैं। वे न केवल अपने परिवार की शान हैं, बल्कि पूरे गाँव की लड़कियों के लिए एक आदर्श, एक प्रेरणा, और एक मिसाल बन चुकी हैं।
वह कहती हैं:
“मैंने कभी हार नहीं मानी। सर्वोदय आश्रम की दीदियों ने मुझे बार-बार उठाया, जब मैं गिरती थी। आज जो मैं हूँ, उसमें मेरी मेहनत और उनकी प्रेरणा दोनों बराबर के हिस्सेदार हैं।”
उनका सपना है – एक दिन सरकारी स्कूल की शिक्षक बनकर ऐसी लड़कियों को पढ़ाना, जो कभी उन्हीं की तरह समाज के दबावों में थीं।
निष्कर्ष
ज्योति की कहानी केवल एक लड़की की सफलता की कहानी नहीं है। यह उन हज़ारों ग्रामीण लड़कियों की कहानी है जिनके सपनों को समाज अक्सर कुचल देता है — लेकिन जब उन्हें थोड़ा मार्गदर्शन, थोड़ी हिम्मत और थोड़ी मदद मिलती है, तो वे असंभव को भी संभव बना सकती हैं।
सर्वोदय आश्रम जैसी संस्थाओं की यही सबसे बड़ी ताक़त है — वे एक-एक ज्योति को जलाकर समाज को रोशन करने का काम कर रही हैं।
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ज्योति
ग्राम – सरैया
ब्लॉक – गोपामऊ
जनपद – हरदोई (उत्तर प्रदेश)
प्रकाशित द्वारा:
सर्वोदय आश्रम, टडियावां, हरदोई
संकलन एवं संपादन:
राज कुमार गौतम एवं मंतशा बानो
(बालिका शिक्षा प्रोग्राम सर्वोदय आश्रम हरदोई )

